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शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

आया बसंत मनभावन....कुसुम कोठारी


आया बसंत मनभावन
हरि आओ ना। 

राधा हारी कर पुकार
हिय दहलीज पर बैठे हैं, 
निर्मोही नंद कुमार
कालिनी कूल खरी गाये
हरि आओ ना। 

फूल फूल डोलत तितलियां
कोयल गाये मधु रागिनीयां
मयूर पंखी भई उतावरी 
सजना चाहे भाल तुम्हारी
हरि आओ ना।

सतरंगी मौसम सुरभित 
पात पात बसंत रंग छाय
गोप गोपियां सुध बिसराय 
सुनादो मुरली मधुर धुन आय
हरि आओ ना।

सृष्टि सजी कर श्रृंगार
कदंब डार पतंगम डोराय
धरणी भई मोहनी मन भाय
कुमदनी सेज सजाय। 
हरि आओ ना। 

-कुसुम कोठारी

19 टिप्‍पणियां:


  1. सुंदर परिकल्पना कुसुम जी.
    ऋतु हो वसंत और कान्हा का संग हो.
    प्रेम रस की धार हो तो पुलकित हर अंग हो.

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    उत्तर
    1. बहुत सा आभार।
      आपकी पंक्तियाँ बहुत सुंदर है।

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  2. बहुत ही सुंदर रचना
    मन को भा गई

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    उत्तर
    1. आभार नीतू जी आपका साथ हमेशा मिलता रहा है। सदा स्नेह बनाऐ रखें।

      हटाएं
    2. बासंती रंगों से साराबोर अनुग्रह करती..
      बहुत सुंदर रचना

      हटाएं
  3. हरि आओ ना ...
    बसंत आ गाय ... ऋतुराज खिल उठा ... तितलियों की आहट है ... प्रिय आओ ना ... हरि आओ ना ..
    मादुर्य लिए सुंदर शब्द ...

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    उत्तर
    1. जी सादर आभार ।
      सुंदर शब्दों के साथ उत्साहित करती प्रतिक्रिया।

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  4. आपकी लिखी रचना सोमवारीय विषय विशेषांक "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 29 जनवरी 2018 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. सादर आभार दी जरूर मेरा अहो भागय मेरी रचना को इस लायक समझा।
    ढेर सा आभार।

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  6. वाह्ह्तह्हह....दी, हमेशा की तरह सुंदर संदेश.प्रेषित करती बहुत सारगर्भित रचना दी...👌👌👌

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  7. आभार प्रिय श्वेता।
    चहकती आपकी सराहना सदा मन मोह लेती है।
    शुभ दिवस।

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  8. मनभावन बसंत और गोपियों का हरि को आवाह्न....
    हरि आओ न....अद्भुत ,शानदार और …लाजवाब
    वाहवाह....

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  9. आदरनीय कुसुम जी -- बसंत को अध्यात्म से जोडती रचना अनुपम है | कहाँ के बिना बसंत ? उन्हें आह्वान हृदयस्पर्शी है | सस्नेह -- मेरी शुबकामनाएं --

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  10. वाह ! एक तो ऋतुराज बसंत और उसमें हरि का आगमन! कृष्ण ने तो स्वयं कहा है गीता में कि वृक्षों में मैं पीपल और ऋतुओं में बसंत हूँ । फिर ये मधुर पुकार - "हरि आओ ना"

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  11. बहुत ही संवेदनशील रचना है

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